
ज्योतिष और राग
Arpit pandey
6/21/20251 min read
भारतीय ज्योतिष (ज्योतिषशास्त्र) और भारतीय शास्त्रीय संगीत (विशेषकर राग) पहली नज़र में दो अलग-अलग विधाएँ लग सकती हैं — एक आकाशीय ग्रहों से संबंधित है, दूसरी स्वर और लय से। लेकिन भारतीय परंपरा में, ये दोनों ही एक ही मूल सिद्धांत पर आधारित हैं: यह सृष्टि मूल रूप से ध्वनि (नाद) से बनी है। इस दृष्टिकोण से, ग्रहों का प्रभाव और रागों की ध्वनि दोनों ही मानव जीवन, भावनाओं और चेतना को प्रभावित करने वाले कंपन (vibrations) हैं।
नाद ब्रह्म: जब सृष्टि स्वयं ध्वनि है
भारतीय दर्शन में यह माना गया है कि सृष्टि की उत्पत्ति "ॐ" नामक मूलध्वनि से हुई। शतपथ ब्राह्मण तथा अन्य वैदिक ग्रंथों में यह स्पष्ट किया गया है कि ध्वनि ही ब्रह्म है — नाद ब्रह्म। यही सिद्धांत शास्त्रीय संगीत में भी है।
13वीं सदी के संगीत रत्नाकर के रचयिता शार्ङ्गदेव ने भगवान शिव को संगीत का आदिगुरु बताया है। उनके अनुसार, सप्तस्वर (सा, रे, ग, म, प, ध, नि) न केवल भावनात्मक ध्वनियाँ हैं, बल्कि इन्हें सप्तग्रहों से जोड़ा गया है। उदाहरणतः:
सा (षड्ज) – सूर्य
रे (ऋषभ) – बुध
ग (गान्धार) – शुक्र
म (मध्यम) – मंगल
प (पंचम) – चंद्रमा
ध (धैवत) – बृहस्पति
नि (निषाद) – शनि
राग: जो मन को रंग दे
संस्कृत में "राग" का अर्थ है "रंगना"। अर्थात् जो मन को रंग दे, वही राग है। बृहद्देशी (8वीं सदी) में मतंग मुनि ने राग की परिभाषा देते हुए कहा कि राग वह है जो श्रोता में कोई विशेष भाव जाग्रत करे।
हर राग का एक विशिष्ट समय होता है – सुबह, दोपहर, शाम या रात – और एक विशेष ऋतु। जैसे भैरव प्रातःकालीन राग है, यमन संध्या के लिए, मेघ मल्हार वर्षा ऋतु के लिए। यही कारण है कि रागों की संरचना प्राकृतिक ऊर्जा के अनुसार की गई है। जैसे जैसे दिन के ग्रह बदलते हैं, वैसे-वैसे मन और शरीर की ऊर्जा भी बदलती है। इसी ऊर्जा को संतुलित करने के लिए विशिष्ट राग गाए जाते हैं।
ज्योतिष और राग का समय सिद्धांत
जैसे मुहूर्त में ग्रहों की स्थिति के अनुसार कार्य शुभ या अशुभ हो सकता है, वैसे ही रागों को भी समय और ऋतु के अनुसार गाने पर उनका प्रभाव बढ़ता है।
जैसे:
सुबह के शांत समय में भैरव राग मानसिक शांति देता है
रात के समय चंद्रमा की ऊर्जा से मेल खाती रचनाएँ शांत रागों में होती हैं
वसंत में बहार राग हृदय को उल्लासित करता है
राग और भावनात्मक उपचार
भारतीय संगीत को केवल कला नहीं माना गया, बल्कि चिकित्सा का माध्यम भी माना गया। राग चिकित्सा एक ऐसी पद्धति है जिसमें मानवीय मानसिकता और रोगों के उपचार के लिए उपयुक्त रागों का प्रयोग किया जाता है। जैसे:
अगर कुंडली में शनि कमजोर है, तो निषाद (नि) स्वर आधारित रागों का प्रयोग किया जाता है
अगर मंगल अधिक प्रभावशाली हो और क्रोध या बेचैनी हो रही हो, तो मध्यम (म) स्वर को शांत करने वाले राग सुझाए जाते हैं
जैसे-जैसे ग्रह हमारी कुंडली में भावनात्मक असंतुलन उत्पन्न करते हैं, राग उसे संगीत के माध्यम से संतुलित कर सकते हैं।
सप्तस्वर और सप्तग्रह का संबंध
रागों के सात स्वर और ज्योतिष के सात प्रमुख ग्रहों का संबंध केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि ऊर्जात्मक है। जैसे ग्रहों की दशा जीवन में उतार-चढ़ाव लाती है, वैसे ही किसी राग के विशिष्ट स्वरों की प्रधानता से राग का रंग और भाव बदलता है।
सा और प – सूर्य और चंद्रमा की तरह, ये कभी बदलते नहीं (कोमल या तीव्र नहीं होते)
बाकी स्वर – अन्य ग्रहों की तरह परिवर्तनीय होते हैं, इनकी कोमल/तीव्र स्थितियाँ होती हैं
इसी कारण कुछ विद्वान कहते हैं कि मानव की कुंडली भी एक राग की तरह होती है, जिसमें ग्रह विभिन्न भावों में वादी, संवादी, अथवा विरुद्ध स्वरों की तरह काम करते हैं।
संगीत और ग्रहों के साथ आत्मा का संयोग
शास्त्रों में कहा गया है कि मानव शरीर एक सूक्ष्म वीणा के समान है। इसके चक्र, नाड़ियों और ऊर्जा केंद्र सप्तस्वरों से जुड़े हुए हैं।
मूलाधार – सा
स्वाधिष्ठान – रे
मणिपुर – ग
अनाहत – म
विशुद्ध – प
आज्ञा – ध
सहस्रार – नि
जब कोई व्यक्ति सही राग को सही समय पर सुनता या गाता है, तो वह इन चक्रों को सक्रिय कर सकता है।
निष्कर्ष:
भारतीय परंपरा में, ज्योतिष और संगीत दोनों को ब्रह्मांडीय विज्ञान माना गया है। एक ग्रहों की चाल से समय की समझ देता है, दूसरा ध्वनि के माध्यम से चेतना को रंगता है। जब दोनों का सही संयोजन होता है, तो व्यक्ति की आत्मा ब्रह्मांड की लय के साथ एक हो जाती है।
तो अगली बार जब आप कोई राग सुनें, ध्यान दें कि वह केवल कानों के लिए नहीं है – वह आपकी आत्मा, आपकी कुंडली और आपके जीवन के सितारों से संवाद कर रहा है।